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दिव्या भारती की मौत कैसे हुई? By soorajsingh_deep 25 फरवरी, 1974 को पैदा हुई दिव्या भारती की मौत 5 अप्रैल, 1993 को हुई. saurabh thelallantopsd@gmail.com अप्रैल 05, 2019 11:41 AM मुंबई पुलिस के मुताबिक दिव्या भारती की मौत एक एक्सिडेंट है. ये हादसा हुआ 5 अप्रैल 1993 को. जगह थी वर्सोवा, अंधेरी वेस्ट मुंबई के तुलसी अपार्टमेंट की पांचवी मंजिल का एक अपार्टमेंट. इस अपार्टमेंट के लिविंग रूम की खिड़की से दिव्या रात 11.30 बजे ग्राउंड फ्लोर पर गिरीं. उन्हें नजदीकी कूपर अस्पताल ले जाया गया. वहां उन्होंने दम तोड़ दिया. 7 अप्रैल को हिंदू रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्कार पति साजिद नाडियावाला ने किया. अब बात मौत की गुत्थी और उसके आगे पीछे के तमाम ब्यौरों की. ओम प्रकाश भारती और मीता भारती की बेटी दिव्या भारती ने नवीं क्लास की पढ़ाई के बाद 14 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया. तब तक वह कुछ मॉडलिंग कर चुकी थीं. गोविंदा के भाई कीर्ति कुमार ने उन्हें बतौर हीरोइन लॉन्च करने का फैसला किया था. पर बाद में बात बिगड़ गई. फिर दिव्या तेलुगु में बनी फिल्म बूबली राजा में वेंकटेश की हीरोइ...
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एक मर्डर, एक वोट और मध्य प्रदेश में मदद को भटकते एक परिवार की हिला देने वाली कहानी
मध्यप्रदेश में 2019 में हुई देवेंद्र चौरसिया की हत्या का मामला हैरान करने वाला है.
15 मार्च 2019. दिन शुक्रवार. जिला दमोह. मध्य प्रदेश. एक एफआईआर दर्ज होती है. हत्या की एफआईआर. हत्या किसकी? पहले बसपा नेता रहे और बाद में कांग्रेस में शामिल हो चुके देवेंद्र चौरसिया की.
एफआईआर में क्या है, पहले वो देख लीजिए. लिखा है-
देवेंद्र चौरसिया अपने भाई महेश प्रसाद, अशोक, बेटे स्वमेश के साथ अपने दफ्तर पहुंचे. 15 मार्च 2019 को सुबह करीब 10.45 मिनट पर. दफ्तर खोल ही रहे थे कि तीन गाड़ियों और मोटरसाइकलों से कई लोग वहां पहुंचे. इनमें कौशलेंद्र सिंह चंदू, गोविंद सिंह (विधायक रामबाई के पति), गोलू सिंह, श्रीराम शर्मा, अमजद पठान, लोकेश सिंह और इंद्रपाल सिंह (जिला पंचायत अध्यक्ष के बेटे) समेत 28 लोग थे. सभी ने गाड़ियों से उतरते ही देवेंद्र पर लाठी, रॉड से हमला बोल दिया. बीचबचाव के लिए आए स्वमेश को मारा. बोले- तूने पार्टी क्यों बदल ली? तुझे जान से मार देंगे. (ये लाइन याद रखिएगा, इस पर बाद में बात करेंगे). इतने में दफ्तर के और लोग आ गए तो ये लोग भाग गए. घायल देवेंद्र और स्वमेश को अस्पताल ले जाया गया.
एफआईआर की कॉपी में क्या लिखा है, आप देख सकते हैं.
एफआईआर दर्ज करवाने पहुंचे थे देवेंद्र के बड़े भाई महेश प्रसाद. वो खुद मौके पर थे. उसी दिन हत्या के प्रयास यानी धारा 307 समेत 8 धाराओं में मुकदमा दर्ज हो गया.
इसके बाद क्या हुआ?
देवेंद्र चौरसिया को दमोह के अस्पतालों के बाद जबलपुर ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. मामला 307 से 302 का हो गया. देवेंद्र कांग्रेस नेता थे. राज्य में कांग्रेस सरकार. तो कार्रवाई शुरू हुई. नामजद सभी लोग फरार हो गए. कुछ लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिसमें विधायक रामबाई के कुछ रिश्तेदार और जिला पंचायत अध्यक्ष का बेटा इंद्रपाल था.
अब आगे बढ़ने से पहले वो लाइन याद कीजिए, जो हमने एफआईआर में छोड़ी थी –
तूने पार्टी क्यों बदल ली? तुझे जान से मार देंगे.
इसी लाइन में हत्या का पूरा कारण छिपा बताया जाता है. शुरू से शुरू करते हैं. देवेंद्र चौरसिया दमोह के बहुजन समाज पार्टी के पुराने नेता रहे थे. दमोह से कई चुनाव भी लड़े. देवेंद्र के भाई की पत्नी जिला पंचायत सदस्य हैं. 30 जनवरी 2019 को दमोह के जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल के खिलाफ एक अविश्वास प्रस्ताव आता है. 9 जिला पंचायत सदस्य इसे लेकर आते हैं. इनमें से एक देवेंद्र के भाई की पत्नी भी थीं. देवेंद्र के पुत्र स्वमेश बताते हैं कि अगुवाई उनके पिता देवेंद्र चौरसिया ही कर रहे थे. उनका आरोप है कि ये बात जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल और उपाध्यक्ष व तब तक विधायक बन चुकीं रामबाई को पसंद नहीं आई.
स्वमेश आरोप लगाते हैं कि उनके पिता देवेंद्र से विधायक रामबाई के पति गोविंद सिंह, शिवचरण पटेल के लड़के इंद्रपाल आदि ने अविश्वास प्रस्ताव से पीछे हटने को कहा. जान से मारने की धमकी भी दी. खैर, विवाद थम गया. शिवचरण इसके बाद भी अध्यक्ष बने रहे. स्वमेश आरोप लगाते हैं कि इसके बाद भी उनके पिता पर खतरा कम नहीं हुआ. इसी खतरे को देखते हुए 12 मार्च को देवेंद्र चौरसिया ने कांग्रेस जॉइन कर ली. वो भी मुख्यमंत्री कमलनाथ की मौजदूगी में. स्वमेश बताते हैं कांग्रेस जॉइन करने का एक कारण खुद की सुरक्षा भी था. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी उनकी सुरक्षा और सम्मान की रक्षा का उनसे वादा किया था.
मगर तीन दिन बाद ये वादा तार-तार हो गया. देवेंद्र की हत्या हो गई. सरेआम उनके ऑफिस में घुसकर. सत्ताधारी कांग्रेस की सरकार में उसके ही एक नेता की हत्या. स्वमेश आरोप लगाते हैं कि शुरुआत में पुलिस एफआईआर लिखने से लेकर कार्रवाई करती नजर आई. कुछ गिरफ्तारियां हुईं. मगर कई आरोपी फरार हो गए. आरोपियों की फरारी की तरह ही धीरे-धीरे पुलिस का रवैया भी ढीला होता चला गया. स्वमेश खुद इस मर्डर में चश्मदीद गवाह हैं. उनका 164 के तहत दर्ज बयान पढ़ लीजिए –
सरकार और एक वोट की कीमत
मध्य प्रदेश में उस वक्त इस मामले की तरह एक और चीज ढीली होती दिख रही थी. मुख्यमंत्री कमलनाथ की अपनी सरकार पर पकड़. ये अनिश्चितता तो उस तारीख से ही बनी हुई थी, जब चुनाव के नतीजे आए. 230 सीटों की विधानसभा में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं. बीजेपी सिर्फ 5 पीछे 109 सीटों से साथ खड़ी थी. खैर समाजवादी पार्टी के एक, बहुजन समाज पार्टी के दो और चार निर्दलीय उम्मीदवारों की मदद से कांग्रेस ने 121 सदस्यों को समर्थन हासिल कर लिया. सरकार बन गई.
कमलनाथ सरकार को समर्थन देने वालों में विधायक रामबाई भी थीं. वही रामबाई जिनके पति और रिश्तेदारों पर देवेंद्र चौरसिया की हत्या का आरोप है. इधर मार्च-अप्रैल में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों ने फिर एक बार कमलनाथ के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए थे. कांग्रेस पार्टी प्रदेश की 29 सीटों में मात्र एक छिंदवाड़ा की सीट जीत पाई. इस कमजोरी में दूसरी पार्टी के सदस्यों को बार्गेनिंग का मौका नजर आया. वो मंत्री पद के लिए दबाव बनाने लगे. बीजेपी इस घटनाक्रम पर पहले से ही नजर रख रही थी.
कमलनाथ सरकार बनने के साथ ही डांवाडोल स्थिति में थी.
कमलनाथ इन चुनाव परिणामों से पहले ही आरोप लगा चुके थे कि कांग्रेस के 10 विधायकों को बीजेपी ने पैसे और पद की पेशकश की है. तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह का बयान आया –
कमलनाथ सरकार बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जो हालात हैं, उनसे पता चलता है कि उनकी कोशिश बहुत लंबे समय तक चलने वाली नहीं है.
फिर लौटते हैं अब बसपा विधायक रामबाई पर. स्वमेश आरोप लगाते हैं कि रामबाई को भी इस दरम्यान फुल मौका नजर आया. बैसाखियों पर खड़ी सरकार, जिसमें उनका भी योगदान था, उससे फायदा लेने का.
देवेंद्र चौरसिया के बेटे स्वमेश का आरोप है कि जब प्रदेश की राजनीति में ये सब हो रहा था, तब उन्हें आर्थिक चोट पहुंचाने के हर प्रयास किए गए. अगस्त से सितंबर के बीच उनके दो क्रेशर प्लांट बिना किसी ठोस कारण के सीज करवा दिए गए. उनके ठेकेदारी के लाइसेंस रद्द हो गए. माइनिंग के लिए 2026 तक का जारी लाइसेंस अचानक रद्द कर दिया गया.
वो आगे आरोप लगाते हैं कि अगस्त 2019 में देवेंद्र चौरसिया की हत्या में नामजद विधायक रामबाई के पति गोविंद सिंह का मुकदमे से नाम हट गया. इसका कारण बताया गया कि गोविंद की मोबाइल की लोकेशन नहीं मिल रही थी. इससे पहले इन्हीं गोविंद सिंह पर 25000 तक का इनाम तक घोषित हो गया था. गोविंद फरार थे. गोविंद पर पहले से 25 मुकदमे दर्ज हैं. इसमें 4 हत्या और 3 हत्या के प्रयास के हैं. स्वमेश आरोप लगाते हैं कि ये सब विधायक रामबाई के दबाव में कांग्रेस सरकार कर रही थी. उनके परिवार पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा था.
सबसे मांगते रहे मदद
हर तरफ से घिरने के बाद स्वमेश ने तब विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव को चिट्ठी लिखी. मदद मांगी. कई बार मिले भी. मगर स्वमेश का आरोप है कि उनको कोई मदद नहीं मिली. स्वमेश ने इसके अलावा क्षेत्रीय सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल से मदद मांगी. उनसे मिलने गए. उनका आरोप है कि यहां भी मदद मिली नहीं. हमने मामले में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल से बात की. उन्होंने कहा कि मामला कोर्ट में है. इसलिए वो इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे.
स्वमेश का आरोप है कि उन्होंने मामले में प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री सबको चिट्ठी लिखीं. मगर कहीं सुनवाई नहीं हुई.
प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी.
तत्कालीन सीएम कमलनाथ को लिखी चिट्ठी.
खैर, इस बीच मध्य प्रदेश की राजनीति फिर एक करवट ले चुकी थी. 20 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री कमलनाथ सामने आते हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस करते बताते हैं कि वो राज्यपाल को इस्तीफा देने जा रहे हैं. ऐसी नौबत इसलिए आई क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने 22 विधायक लेकर अंडरग्राउंड हो गए थे. दूसरी तरफ निर्दलीय और सपा और बसपा के विधायक जिनमें रामबाई भी थीं, वो अब भी कमलनाथ के साथ थे मगर सरकार बच ना सकी.
23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बन चुके थे. 24 मार्च को सदन में विश्वास मत साबित करने की बारी आई तो बसपा के दो, सपा का एक और दो निर्दलीय विधायक पाला बदल बीजेपी के साथ आ चुके थे. इसमें विधायक रामबाई भी शामिल थीं. एक-एक वोट की कीमत वैसे भी बीजेपी से बेहतर कौन जान सकता है. 1999 में एक वोट ने ही उसकी सरकार गिरवा दी थी. तो रामबाई जैसी विधायक बीजेपी के लिए भी उतनी ही काम की थीं, जितनी वो कमलनाथ या कांग्रेस के लिए थीं. यानी सरकार आई गई, मगर रामबाई का रसूख कायम था.
एक और मुकदमा
फिर एक और तारीख आती है. 24 जून 2020. एक और मुकदमा दर्ज होता है. चौरसिया परिवार के 4 लोगों के खिलाफ. अनिमेश चौरसिया, केतन चौरसिया, प्रवीण चौरसिया और अशोक चौरसिया के खिलाफ. एफआईआर के मुताबिक, इन लोगों ने 24 जून की रात 9 बजे जमीन विवाद में विद्यारानी और कमल अहीरवार पर जानलेवा हमला किया. बम मारा. गोली चलाई. गोली लगने से घायल कमल और विद्यारानी को अस्पताल में भर्ती करवाया गया. मामले में 307 समेत 8 धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ. मामले में आरोपी स्वमेश के परिवार वाले फरार चल रहे हैं. आए दिन पुलिस घरों में दबिश मार रही है.
स्वमेश आरोप लगाते हैं कि ये मामला झूठा है. उनके रिश्तेदारों ने ऐसी किसी घटना को अंजाम नहीं दिया. उनके पास सीसीटीवी फुटेज हैं जो बताती हैं कि घटना के वक्त चारों आरोपी घर पर थे. ये ही नहीं, देवेंद्र चौरसिया की हत्या के बाद उनके घर के बाहर तैनात किए गए पुलिस वालों के बयान भी हैं, जो बताते हैं कि आरोपी घटना के वक्त घर पर थे.
स्वमेश आरोप लगाते हैं कि उन्होंने इन सभी साक्ष्यों के साथ पुलिस से जांच करवाने को कहा. बड़े अधिकारियों से गुहार लगाई. नेताओं से गुहार लगाई मगर कोई सुनने को तैयार नहीं है. स्वमेश ये भी आरोप लगाते हैं कि जिन विद्यारानी और उनके बेटे ने उनके खिलाफ मुकदमा करवाया है, वो उनके पिता वाले मामले में विधायक के पति की तरफ से पक्षकार थीं. उनका बयान था कि घटना के वक्त गोविंद सिंह उनके घर पर थे.
स्वमेश ने इस एफआईआर पर जांच की मांग की.
इस मुकदमे के बाद पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के पुत्र और भाजपा नेता सिद्धार्थ मलैया भी सोमेश के परिवार के पक्ष में आए थे. बंद का आह्वान किया था.
क्या कहती हैं विधायक?
खैर इन सभी आरोपों पर हमने विधायक रामबाई से बात की. उनका कहना है कि ये सभी आरोप गलत हैं. उनका कहना है कि उनके परिवार के लोगों को गलत फंसाया गया है. घटनास्थल के वीडियो फुटेज में ना मेरा पति है, ना देवर है. सत्ता का दुरुपयोग करने के आरोप पर वह कहती हैं कि मैं सिर्फ एक विधायक हूं. क्षेत्र के लोगों का काम करवाने के लिए सरकार के साथ रहना जरूरी लगा, तो मैं रही. वह कहती हैं कि शुरू से ही वह इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं. चाहे कमलनाथ सरकार हो या अब शिवराज सरकार. मैंने विधानसभा में इस पर सवाल भी उठाया था.
विधायक रामबाई ने सभी आरोपों से इनकार किया.
पति का नाम मुकदमे से हटने पर वह कहती हैं कि पुलिस ने जांच में नाम लिखा. उसी ने हटाया. सीबीआई जांच हो जाए तो सबको न्याय मिल जाएगा. मैं तो देवेंद्र चौरसिया के परिवार से भी अपील करती हूं कि वह भी सीबीआई जांच की मांग करें. खैर इस बीच 31 जुलाई को प्रशासन की तरफ से गोविंद सिंह को सिक्युरिटी मिल गई है.
जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल से भी हमारी बात हुई. वह अपने बेटे पर लगे आरोपों को गलत बताते हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर देवेंद्र से खटपट की बात से भी इनकार करते हैं. कहते हैं कि जब मैं जिला पंचायत अध्यक्ष बना, तब तो देवेंद्र की बहू ने हमको समर्थन दिया था. देवेंद्र की हत्या में खुद के बेटे के होने से भी वो इनकार करते हैं. कहते हैं कि देवेंद्र के प्लांट में तमाम सीसीटीवी कैमरे थे. घटना के बाद उनको हटा लिया गया ताकि साक्ष्य छिपाए जा सकें. अपने बेटे के जेल में बंद होने पर वो कहते हैं कि उस पर अब कोर्ट ही निर्णय करेगा.
खैर इस बीच एक कार्रवाई जरूर हुई है. धारा 212 के तहत स्वमेश और उनके एक और रिश्तेदार पर मुकदमा दर्ज हो गया है. अपने आरोपी रिश्तेदारों की मदद करने के आरोप में. हमने इस मुकदमे, पिछले मुकदमे के बारे में पुलिस का पक्ष जानने की कोशिश की. मगर पुलिस ने बात करने से इनकार कर दिया. एसपी कहते हैं कि जो कहेंगे, कोर्ट में कहेंगे.
हालांकि 13 अगस्त को चौरसिया परिवार के लिए राहत की खबर आई. इस मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने दमोह पुलिस को अगली सुनवाई तक कार्रवाई ना करने के आदेश दिए हैं.मगर इससे इस परिवार की मुश्किलें कम नहीं होतीं.
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